MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

अध्याय - 6

भारत में स्तरीकरण पर समकालीन चर्चा

(Contemporary Debates on Stratification in India)

 

प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।

उत्तर -

अनुसूचित जाति

भारतीय समाज अनेक जातियों या उपजातियों में बंटा है जिनकी संख्या हजारों में है। मगर मोटे तौर पर हम जातियों की तीन श्रेणियाँ ही जानते हैं -

(1) द्विज या सवर्ण,
(2) मध्यवर्ती जातियाँ, जिन्हें साधारणतया हम पिछड़ी जातियों की संज्ञा देते हैं,
(3) छोटी जातियाँ, जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था।

जातियों को एक आनुष्ठानिक क्रम-परंपरा में श्रेणीबद्ध किया गया है। इस क्रम-परंपरा के शीर्ष पर विराजमान ऊँची जातियाँ मुख्य या प्रबल जातियाँ थीं। यहाँ पर हम हाशिए की जातियों की उत्पत्ति पर चर्चा नहीं करेंगे। बल्कि यहाँ हम अपनी चर्चा को इस बात तक सीमित रखेंगे कि भारतीय समाज के इतिहास के किसी दौर में अछूत जातियाँ ऐसे काम-धंधों में लगी थीं जो समाज की दृष्टि में हेय और पतित कार्य माने जाते थे जैसे मृत पशुओं को ढोना, चमड़ा कमाना, साफ-सफाई का काम करना और शमशान घाटों में चांडाल का काम करना। ये जातियाँ शारीरिक श्रम करने वाले कमेरों, मजदूरों, सेवकों, दासों, चौकीदारी इत्यादि का काम करती थीं। इनकी बस्ती गांव से एकदम अलग होती थी। ये जातियाँ हालांकि सभी तरह के हाथ के काम किया करती थीं, लेकिन चाहे वह गाँव हो या नगर, समाज के लिए वे अपरिहार्य थीं, उसका अनिवार्य अंग थीं। अछूत जातियों को हाशिए की जातियों की संज्ञा उनके पेशों से जुड़े निम्न पारितोषिक और प्रतिष्ठा और फलस्वरूप उनकी वंचना को -देखते हुए दी गई है। आमतौर पर आमदनी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सांस्कृतिक संसाधनों के मामले में भी वे सबसे नीचे होती हैं। मगर निम्न जातियों को कहीं अछूत माना जाता है, तो कही नहीं। जैसे—धोबी या तेली को भारत में एक भाग में अछूत समझा जाता है तो दूसरे में नहीं।

अनुसूचित जातियों को उपेक्षित हाशिए के समूह के रूप में देखा जाना, हमारा ध्यान उन पर थोपी गई अनेक किस्म की आवश्यकताओं की ओर खींचता है। मगर यहाँ यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि अछूत जातियों पर अशक्तताओं की जो सूची लागू होती है, वह किसी एक जगह के चलन को नहीं दर्शाती। समूचे भारत में हाशिए की जातियों पर जो-जो अशक्तताएँ थोपी गई हैं इससे हमें उनकी पूरी जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि यह एक सूची पत्र है जो इस या उस जगह में प्रचलित अस्पृश्यता से जुड़ा है। ये अशक्तताएँ इस प्रकार हैं-

(1) सार्वजनिक सुविधाओं जैसे कुओं, स्कूलों, रास्तों, डाकघर और अदालतों में जाने की मनाही।

(2) मदिरों और उनसे जुड़ी धर्मशालाओं या पीठों में जाने की मनाही क्योंकि उनकी उपस्थिति से देवी-देवता और उनके सवर्ण उपासक अपवित्र हो जाएँगे। अछूतों या शूद्रों को सन्यासी बनने और वेदों का ज्ञान हासिल करने की अनुमति नहीं थी।

( 3 ) उन्हें किसी भी तरह के प्रतिष्ठित और लाभप्रद रोजगार से बाहर रखा जाता था और वे मलिन या हाथ से किए जाने वाले काम ही कर सकते थे।

(4) आवासीय पार्थक्य अन्य समूहों के मुकाबले उनके मामले में अधिक कठोर था। वे गांव के बाहरी छोर पर ही घर बना सकते थे। उन्हें धोबी और नाई की सेवाएँ भी नहीं दी जाती थीं। चाय और खाने-पीने की दुकानों में वे नहीं जा सकती थीं। या फिर उनके लिए बर्तन अलग रखे जाते थे।

(5) उनकी जीवनशैली पर भी वर्जनाएँ थोपी गईं थीं। विशेषकर वे अच्छी चीजों या वस्त्रों का उपयोग नहीं कर सकती थीं। कई इलाकों में घुड़सवारी करना, साइकिल चलाना, छाता, जूता-चप्पल का प्रयोग, सोने-चाँदी के आभूषण पहनना, दूल्हे को डोली - पालकी में ले जाना भी उनके लिए मना था।

(6) ऊँची जातियों के सामने बोलते, उन्हें संबोधित करते, बैठते और खड़े होते समय उन्हें आदर देना अनिवार्य था।

(7) चलने-फिरने पर पाबंदी। अछूतों को ऊँची जातियों के घरों या व्यक्तियों से एक निश्चित दूरी बनाकर ही रास्तों पर चलने दिया जाता था।

(8) ऊँची जातियों के लिए बेगार करना और उनकी सेवा-चाकरी के काम करना।

अनुसूचित जातियों में सामाजिक गतिशीलता,

अनुसूचित जातियाँ कितनी गतिशील हैं, इसे हम कुछ आनुभवजन्य आँकड़ों की रोशनी • में समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए, अनुसूचित जातियों साक्षरता 1961 में 10 प्रतिशत थी जो 1991 में बढ़कर 37 प्रतिशत तक हो गई। स्कूलों में उन लोगों के नामांकन में भी 1981 और 1991 के बीच दोगुना वृद्धि हुई है। सरकारी कार्यालयों और प्रशासन में अनुसूचित जाति के कर्मचारियों की संख्या 1956 में 2,12,000 थी, जो 1992 में 6,00,000 पाई गई। सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में नियुक्त अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 1970 में 40,000 से बढ़कर 1992 में 3,69,000 पाई गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों में गरीबों की संख्या 1983-84 में 58 प्रतिशत थी, जो 1987-88 में 50 प्रतिशत हो गई।

अनुसूचित जातियों में सामाजिक बदलाव और गतिशीलता का एक और संकेत हमें देहाती और शहरी समाज में जातिगत तनावों और संघर्षों से मिलता है। अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ होने वाली हिंसा के मूल में उनका पेशा है। भेदभावपूर्ण जातिगत रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें घृणित काम करने होते थे, जैसे उन्हें मरे पशुओं को निबटाना होता था, उनसे दाई और बेगार जैसे काम लिए जाते थे। मगर वे अब इन कामों को छोड़ने लगे हैं। बल्कि वे खुलकर सवर्णों की अवज्ञा करने लगे हैं और सार्वजनिक स्थलों जैसे कुओं, मार्गों, मंदिरों के प्रयोग या प्रवेश को लेकर उन पर जो भी वर्जनाएँ थोंपी गई थी, वे उन्हें तोड़ रहे हैं। वयस्क मताधिकार मिलने के कारण उनमें राजनीतिक जागरूकता का संचार हुआ है और आत्म सम्मान की भावना जागी है। अनुसूचित जाति के व्यक्ति से बंधुआ मजदूरी या बेगार नहीं कराया जा सकता। इसी प्रकार अब उन्हें उनके घरों और जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता। इन्हीं सब कारणों से जातिगत तनावों और संघर्षों की स्थिति बन गई है।

दबंग जातियाँ इन जातियों से अपने परंपरागत शोषणात्मक संबंधों पर आश्रित रही हैं और जब कभी अनुसूचित जातियाँ मौजूदा संबंधों को चुनौती देतीं हैं, तो वे भड़ककर हिंसा पर आमादा हो जाती हैं। इन जातियों के लोगों की संपत्ति जबरिया हथियाना, इनकी औरतों के साथ बलात्कार करना और उन्हें बेचना, उन्हें जलाना और उनकी हत्या करना, ये सभी घटनाएँ उनके खिलाफ होने वाली हिंसा के उदाहरण हैं।

जातिगत हिंसा अनुसूचित जातियों की सामाजिक गतिशीलता की अभिव्यक्ति है, जो हमें देहातों में अधिक देखने को मिलती है। मगर शहरों में हमें ऐसा कम देखने को मिलता है, जिसका कारण यह है कि वहाँ शिक्षा, पंथ निरपेक्ष रोजगार, आर्थिक और प्रौद्योगिकीय बदलावों के जरिए आधुनिकीकरण और सामाजिक विकास ज्यादा हुआ है।

अनुसूचित जातियों की सीमांत या हाशिए की स्थिति में सुधार की बात महात्मा ज्योतिबा फुले, डा० भीमराव अम्बेडकर जैसे अनेक समाज सुधारक नेताओं के योगदान का उल्लेख किए बिना अधूरी रहेगी। अम्बेडकर की विचारधारा मुख्यतः सामाजिक समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की विचारधारा थी। उनका मानना था कि वर्ण-व्यवस्था में व्याप्त सामाजिक असमानता को दूर करके ही हम ये लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। हाशिए की जातियों को पतित और उन्हें अमानवीय बनाने वाले समाज को आमूल बदल डालने के लिए इन्होंने विरोध आंदोलन छेड़ा। उनका मानना था कि अछूत जातियों को भी सामाजिक समानता का अधिकार मिलना चाहिए। अम्बेडकर के विचार से निम्न जातियों की समानता को सामाजिक-राजनैतिक, धार्मिक और अवसरों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जहाँ यह अत्यधिक असमानता के विरोध में खड़ी होती है। दूसरे शब्दों में अम्बेडकर की दृष्टि में असमानता सापेक्षिक होती है।

समानता और सामाजिक न्याय

इसी प्रकार अम्बेड़कर की नजर में न्याय का अर्थ किसी भी व्यक्ति के साथ न्यायोचित ढंग से व्यवहार किया जाना है, जिसका समाज में वह अधिकारी है। उनके अनुसार अनुसूचित जातियों को समानता और न्याय मिले, इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुछ विशेष रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए --

(i) राज्य को हस्तक्षेप और
(2) दलित-शोषित जातियों के विरोध आंदोलन।

राज्य के हस्तक्षेप की दिशा में उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने छुआछूत के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और दलितों की एक पंथनिरपेक्ष पार्टी बनाई। वे महिलाओं की स्थिति में भी सुधार लाने के पक्षधर थे।

दरअसल वे स्त्री और पुरुष दोनों को समान मानते थे। उनकी यह विचारधारा भारतीय संविधान के उन तमाम प्रावधानों में झलकती है जो महिलाओं के समान अधिकारों के लिए किए गए हैं। उन्होंने 1942 में दलित महिलाओं का आह्वान किया था कि अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए संगठित हों। महिलाओं के वैवाहिक, तलाक और संपत्ति के उत्तराधिकार संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने 1951 में संसद के पटल पर हिन्दू संहिता विधेयक रखा। उनके छुआछूत विरोधी आंदोलन और देश में चल रहे दलित आंदोलनों को उनके समर्थन के फलस्वरूप संसद ने अस्पृश्यता. (अपराध) निरोधक अधिनियम, 1955 पारित किया। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण, उनकी रक्षा और विकास के लिए सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने में भी अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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